गाँव जाकर नौकर से प्यास बुझवाई

सबसे पहले पाठक-समूह को मेरी तरफ से यानि कि आंचल की तरफ से बहुत बहुत
प्यार- दुलार !

इस वेबसाइट पर प्रकाशित होने वाले किस्से पढ़-पढ़ कर मुझे अपनी प्यास
बुझाने का रास्ता मिला।

मेरी उम्र 28 साल की है, मैं पंजाब की रहने वाली हूँ। मेरे ब्रा का नाप
है छत्तीस, कमर अठाईस और गांड छत्तीस !

मैं एक गरीब परिवार से लेकिन सपने आसमान छूने के थे। हम तीन बहने हैं।
मैं चौदह साल की थी जब मेरे पापा ने आत्महत्या कर ली थी। तीन बच्चों की
माँ होने के बाद भी मेरी माँ में इतनी आग थी, कसा हुआ जिस्म जिसको
सम्भालने के लिए मर्द भी ज़बरदस्त चाहिए था। इससे आगे मैं क्या कहूँ आप
समझदार हो !

पिता की मौत के बाद बड़ी बहन को नानी ले गई, उसकी शादी, पढ़ाई की
जिम्मेदारी ली, अपने किसी अमीर यार से मिलकर उसके खर्चे पर दूसरी वाली को
बोर्डिंग में डाल दिया।

रह गई मैं ! मुझे कमरे में सुला कर माँ दूसरे कमरे में रंगरलियाँ मनाती, ऐश करती !
मैं भी जवानी की दहलीज़ पर थी। आए दिन उसका नया आशिक पैदा हो जाता, मैं
छुप कर देखती तो पहले पहले मुझे माँ पर बहुत गुस्सा आता, फिर सब देख मुझे
अजीब जा एहसास होने लगा, मेरे छोटे-छोटे चूचक तन जाते, पैंटी गीली होने
लगती। अब मेरा भी दाना कूदता था। मेरे कदम डोलते वक़्त नहीं लगा।

माँ जवान लड़कों, कॉलेज के लड़कों को भी अपने हुस्न-जाल में फंसाती। उनमे
से एक लड़का बबलू जिसकी असल में आँख मुझ पर थी, माँ मुझ तक आने का जरिया
थी।

एक दिन वो उस समय आया जब उसे मालूम था कि माँ घर में नहीं है। अन्दर आते
ही कुण्डी लगा ली और मुझे दोनों कन्धों से पकड़ कर दोस्ती करने के लिए
कहने लगा। मेरी बदन में कर्रेंट सा लगा। इससे पहले मैं कुछ बोलती, उसने
अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, मना करने का मौका नहीं दे रहा था। उसने
मुझे उठाया और सीधा माँ के कमरे में ले गया और बिस्तर पर डाल मुझे पर छा
गया। उसने मेरा एक-एक कपड़ा उतार दिया और खुद के भी सारे कपड़े उतार दिए।
फ़िर मेरे मुँह में लौड़ा डालने लगा तो मैं काफी छटपटाई, टांगे मारी लेकिन
उसमें बहुत दम था। उसने मुझे इस कदर जकड़ लिया कि मैं हिल नहीं पाई, मुझे
उसका चूसना पड़ा और मेरी चूत पर थूक लगाते हुए उसने मेरी सील बंद चूत पर
मेरे ही थूक से गीला लौड़ा रख दिया। उसका एक हाथ मेरे मम्मे पर था। सेब
जैसे छोटे मम्मे तन गए थे। जब उसने लौड़ा मेरी चूत पर रगड़ा तो मुझे मजा
आने लगा।

अचानक एक ज़बरदस्त वार हुआ और फड़क की आवाज़ से चीरता हुआ उसका आधे से
ज्यादा लौड़ा मेरी चूत में खून से लथपथ !

मेरा मुँह उसने अपने हाथ से दबा रखा था। कुछ पलों के लिए मुझे लगा कि आज
मेरा इस दुनिया में आखिरी दिन है। मैं रोने लगी, उसके तरले, मिन्नतें
करने लगी। तभी उसने एकदम लौड़ा मेरी चूत से निकाल लिया और पास पड़ी मेरी
पैंटी से उसने खून साफ़ किया।

अपने लौड़े को भी थूक लगा फिर घुसा दिया उसने !
कुछ मिनट बाद मैं सामान्य होने लगी और अब वही लौड़ा मुझे मजे देने लगा,
खुद चुदवाने लगी। दोनों एक साथ झड़ गए और हांफने लगे। उसने मुझे औरत बना
डाला। उसने मुझे एक बार फिर से ठोका।

अब आये दिन मौका देख वो आता, मुझे बजाता, चला जाता !
फिर कुछ और लड़कों से मेरे संबंध बने, जिनकी चर्चा होने लगी !
मेरी जवानी एकदम से आग उगलने लगी, किसी का भी लौड़ा ले लेती थी मैं !
अपनी माँ पर गई थी मैं !

सर्दियों के दिन थे, घना कोहरा पड़ता था। मैं सुबह स्कूल से पहले ट्यूशन
पढ़ने जाती थी। मेरे पीछे एक चमकती कार आने लगी और आखिर मेरा भी दिल करता
कि मैं भी ऐसे घर जाऊं और एक रोज़ उसकी खिड़की ठीक मेरे पास आकर खुली और
मुझे बिठा कर कार चल पड़ी। उसने मुझे अपने बारे में बताया, मेरे बारे में
पूछा, मेरा नंबर लिया और फ़िर रोज़ आता।

एक दिन वो कार साइड पर लगा मेरे जिस्म से खेला। उसने मुझे कहा- मैं तुझसे
शादी करना चाहता हूँ, उसके बाद ही कुछ करेंगे !

वो मुझसे उम्र में काफी बड़ा लगता था, उसके शॉपिंग मॉल, रेस्टोरेंट थे।
वो सरदार था और उसकी गाँव में बहुत ज़मीन थी, उसके बाल कटे हुए थे।

जल्दी किसी ने माँ को बता दिया की तेरी छोरी रोज़ किसी की कार में बैठती है।
माँ ने मुझे बिठाया और पूछा।
मैंने सब कुछ बताया।
माँ ने जब देखा कि कितने अमीर घर में उसकी बेटी जा सकती है तो उसके वारे-न्यारे थे।
एक रोज़ वो घर आया और माँ से मेरा हाथ माँगा।
माँ ने कहा- इतनी जल्दी शादी कैसे कर पाऊँगी?
उसने कहा- मुझे कुछ नहीं चाहिए, तीन कपड़ों में ले जाना है !
चुन्नी चढ़ाई हुई और चार फेरे लेकर मैं उसकी हो गई। शादी के चार दिन बाद
उसने एक बहुत बड़ी रेसेप्शन पार्टी रखी जिसमें उसने अपने सारे
रिश्तेदारों, दोस्तों को बुलाया। मुझ जैसी कातिल हसीना से शादी कर स्टेज
पर बैठ कर बहुत खुश था !

अब वो मेरे साथ चिपका रहता लेकिन मेरी तसल्ली नहीं कर पा रहा था। मैं
सिर्फ ऊपर से खुश थी लेकिन उसका लौड़ा वैसा नहीं था जिसकी मुझे आदत थी।

एक दिन मुझे पता चला कि वो पहले से शादीशुदा था, उसका तलाक हो चुका था।
मैंने कुछ नहीं कहा। उसने मेरे लिए आलिशान घर बनवा दिया, कई चमकती कारें,
नौकर-चाकर सोने से लदी-फ़दी रहती।

दिन बीत रहे थे लेकिन यौन-जीवन से मैं खुश नहीं थी। गाँव में काफी ज़मीन
ज़ायदाद थी, जिसपर खूब फसल होती थी। हफ्ते में एक-दो बार गाँव जाते, वहां
भी एक आलीशान फार्म-हाउस था और उसकी देखरेख दो नौकर करते थे। मुझे देख
उनकी आंखें चमक उठती और वासना साफ़ दिखती थी उनकी आंखों में !

वो थे तो नौकर लेकिन हट्टे कट्टे अच्छी मर्दानगी के मालिक थे। उनकी
प्यासी और वासना भरी आँखें देख मेरा दाना कूदने लगता।

फार्म-हाउस में घर के सामने टयूबवेल लगा हुआ था जिसके आगे सीमेंट का बहुत
बड़ा टब जैसा था। रात को मैं भी उसमें नहाने चली जाती।

एक बार मैं खिड़की में खड़ी बालों में कंघी कर रही थी और सामने टब में
नहा रहे उस नौकर को देख रही थी- चौड़ी छाती, घंने बाल, मजबूत जांघें !
उसका अंडरवीयर गीला होकर चिपका हुआ था, उसका लौड़ा देखने में काफी सोलिड
सा लग रहा था।

उसने मुझे खड़ी देख लिया। मैं अपने होंठ चबाने लगी। उसने इधर-उधर देखा और
अपना अंडरवीयर नीचे कर दिया साबुन लगाने के बहाने ! उसका काले रंग का
लौड़ा देख मेरी हालत खराब होने लगी। वो अनजान बन कर लौड़ा सहलाने लगा,
देखते ही उसका तन कर पूरा खड़ा हो गया। मेरा हाथ अपनी कच्छी में चला गया
और दूसरा हाथ मम्मे दबाने लगा।

मैंने उसको इशारे से कुछ कहा कि अन्दर आ जा !
वो जल्दी से टब से निकला, तौलिए से बदन पौंछा। तभी कार का होर्न बज गया,
मेरे पति आ गए !

हम दोनों उदास हो गए। मुझे लेकर वो वापस शहर आ गए लेकिन मैं दिल वहीं छोड़
चुकी थी, बस मौका तलाश करने लगी !

तभी अचानक से मेरे पति को एक कॉल लैटर आई। कनाडा की एक बहुत बड़ा कंपनी
होटल, रेस्टोरेंट आदि के बारे में सेमिनार लग रहे थे। मेरे पति ने और
उनके एक दोस्त ने यह ट्रिप करने का फैंसला लिया। उनका वहाँ पन्द्रह दिन
का सेमिनार था लेकिन घूमने के लिए एक महीने की रिटर्न-टिकट लेकर गए थे।

उनके जाने के बाद मैं खुश थी तभी एक दिन मैंने अपने पुराने बॉय फ्रेंड का
स्क्रैप जब ऑरकुट में देखा तो खिल उठी। उसने अपना मोबाइल नंबर छोड़ा था तो
मैंने तुरंत कॉल की और उसको अपने नीरस यौन-जीवन के बारे बताया।

उसने कहा- तू मायके आजा ! यहीं हम मौका देख मजे करेंगे !
कहते हैं ना कि जब भगवान् सुनता है तो बहुत पास आकर सुन लेता है ! सासु
माँ ने मुझे कहा- गाँव में गेहूं की फसल को पहली खाद डालनी है और फोकल
पॉइंट का परमिट यहाँ है और उस पर या मेरे पति के या मेरे हस्ताक्षर होने
हैं।

मैंने पति से फ़ोन पर पूछा तो उन्होंने मुझे बताया कि कहाँ पड़ा है परमिट
और पैसे वगैरा !

मैं कार लेकर गाँव चली गई। राम ने गेट खोला। मुझे देख उसकी आंखें चमक
उठी। उसको देख मैं भी अपनी अदा से मुस्कुरा दी।

कार लगा कर चाबी दे जाना राजा ! मैंने गिरने का नाटक सा किया तो उसने
मुझे थाम लिया और अपने लिए राजा सुन कर वो और छाती चौड़ी करने लगा, अभी
आया मेरी… ! कहकर चुप हो गया। कुछ देर बाद वो पानी लेकर आया। मैं वाशरूम
गई और तरोताज़ा होकर अपने साथ लेकर आई पारदर्शी सेक्सी नाइटी पहन ली।
गुलाबी नाइटी में काली ब्रा-पेंटी किसी को भी जला कर राख कर सकते थे। वो
चला गया।

दस मिनट बाद मैंने आवाज़ लगाईं और खुद बिस्तर पर उलटी लेट गई, नाइटी सरका
कर ऊपर कर दी जिससे मेरे चूतड़ साफ़ उभर कर दिख रहे थे। उसने दरवाज़ा खोला,

मैंने कहा-आ जाओ ! अभी गिरने से मेरी टांग में दर्द होने लगा है, थोड़ा
दबा दो, मालिश कर दो ! आराम से ऊपर बैठ जाओ !

वो बाहर से सरसों के तेल की बोतल लेकर आया और कुण्डी लगा दी- आराम से
करेंगे, तो दर्द जल्दी भाग जाएगा !

उफ्फफ्फ्फ़ !
वो तेल लगाकर मालिश करने लगा। मैंने धीरे धीरे नीचे से सारी नाइटी उठा दी
और उसका हाथ पकड़ कर अपने चूतडों पर रख दिया। फिर दूसरा भी !

उसने थोड़ा तेल लगा कर चूतड़ मसले तो मैं गर्म होने लगी, खुद नीचे से उठने लगी मैं !
मैं एकदम सीधी हुई और उसको पलट कर उसकी जांघों पर बैठ गई, अपनी नाइटी
उतार फेंकी और मैंने ब्रा भी उतार फेंकी, उसके सामने दो मम्मे थे। मैंने
उसके पजामे को खोल दिया फिर उसकी शर्ट भी और टूट पड़ी उसके ऊपर !

मेरी आग देख वो हैरान रह गया- बहुत प्यासी हो मेरी जान ?
मैंने उसके अंडरवीयर से लुल्ला निकाल लिया और रांड के तरीके से चूसने लगी।
वाह मेरी बुलबुल ! मेरी हसीना और चूस !
हां ! चूसूंगी कमीने ! तेरे मालिक का तो ठीक से खड़ा भी नहीं होता ! फाड़
डालो ! मेरा बस चले तो एक साथ गांड और चूत मरवा लूँ !

इसका भी इंतजाम है मेरी जान !
अबे बिरजू बाबा ! अन्दर आ जाओ ! क्यूँ छुप कर देख कर मुठ मरोगे, इसकी ही
मार लो कमीनी की ! बहुत आग है इसकी चूत में !

राम ने मेरी टांगें फैला दी और बीच आकर दोनों टाँगे कंधों पर टिका कर
झटका दिया, लौड़ा चीरता हुआ घुस गया जैसे आज मेरी झिल्ली फट रही हो !

लेकिन मैंने हिम्मत रखी, मैं भी खेली खाई महिला थी। उसने जल्दी ही पूरा
जड़ तक पहुंचा दिया।

वाह मेरे शेर ! वाह ! फटने दे इसको !
बिरजू मेरे चेहरे के पास आकर बैठ गया। मैंने उसके पजामे का नाड़ा खोला और
फिर उसके कच्छे को उतारा।

मैं चौंक गई, काले रंग का नाग मानो कुंडली मारे बैठा हो ! उसका सोया हुआ
लौड़ा भी मेरे पति के खड़े लौड़े से ज्यादा बड़ा था !

उसने दारु पी रखी थी। मैंने जैसे उसको छुआ, उसमें हरक़त होने लगी। मैंने
अपना तकिया थोड़ा ऊँचा किया और उसके लौड़े को मुँह में ले लिया।

उसका लौड़ा कभी किसी ने मुँह में नहीं लिया था ऐसा उसने मुझे बाद में
बताया और यह भी बताया कि गाँव की कई बड़े घर की औरतें उससे चुदने को आती
जिनको बच्चा नहीं होता था। सास बेटे में नहीं बहु में दोष निकालती थी और
पति अपनी झूठी मर्दानगी की दुहाई दे औरत को दोष देते !

बिरजू ने तीन चार औरतों की कोख भी हरी की थी।
राम अपनी धुन में मुझे चोद रहा था और मैं बिरजू का चूस रही थी। जैसे ही
उसका पूरा तन गया, वो मेरे मुँह में आना बंद हो दिया, सिर्फ उसका टोपा ही
चूस पा रही थी मैं ! बाकी जुबान से उसको मजा दे रही थी।

तभी राम ने तेज़ी दिखाई, वो पागलों की तरह उछल कर मुझे चोदने लगा।
बिरजू का भी मेरे मुँह से निकल गया और राम ने मेरी हड्डियाँ हिला दी और
एक तूफ़ान के बाद शांत होकर मुझ पर गिर कर हांफने लगा। उसके पानी ने मेरी
सारी प्यास बुझा दी।

फिर बिरजू ने मोर्चा संभाला !मुझे डर लग रहा था, उसने काफी थूक लगा गीला
किया और रख दिया मेरी चूत पे ! उसने टाँगे इतनी चौड़ी कर दी कि चूत खुल गई
! काफी बड़ा खिलाड़ी लगा ! उसने झटका देने के बजाये धीरे-धीरे घुसाता चला
गया। मेरी दर्द से जान निकल रही थी। जब मुझे लगा कि अब घुस गया, मैंने सर
ऊपर करके देखा तो अभी आधा बाहर था।

तभी उसने मर्दानगी दिखाई और इतना ज़बरदस्त झटका दिया कि मेरी सांस अटक गई,
आंखें पत्थर होने लगी, दोनों हाथों से चादर को पकड़ लिया। लेकिन उसने
तुरंत निकाल लिया और फिर डाला फिर उसने मुझे वो सुख दिया जो मुझे वाकई
पहले कभी नहीं मिला था। उसके लौड़े से इतना पानी निकला कि जितना कभी नहीं
देखा। कुछ चूत में कुछ मम्मों पर कुछ होंठों पर ! इतने पानी से तो एक साथ
दस बच्चे ठहर जाएँ !मैं उठी, चादर पर खून के धब्बे लगे थे। वाशरूम गई,
चूत कोसे पानी से साफ़ की। मुझसे चला नहीं जा रहा था। वो दोनों वहीं मौजूद
थे, मैंने कहा- मेरे कपडे !

बिरजू बोला- साली, दे दूंगा ! क्या जल्दी है ?
मैंने कहा- अब मुझे जाना है !
पर्स से परमिट की कॉपी निकाली, हस्ताक्षर किये और दोनों को पैसे दिए। मैं
सिर्फ ब्रा पेंटी में थी, मानो अपने मर्द के सामने खड़ी होऊं !

वो दोनों मुझे देख-देख मजे ले रहे थे।
लाओ कपड़े दो !
कपड़े मिल जायेंगे ! एक बार बाँहों में आजा मेरी जान !
मैंने गुस्से से कहा- अपनी औकात में रहो ! जितना मेरा दिल किया, मैंने
तुम्हें मजे दिए !

वो बोला- साली, छिनाल कहीं की ! साली, तू प्यासी थी, तू चल के आई थी ना कि हम !
हरामी जुबान बंद कर ! कपड़े दे दे !
तेरी माँ की चूत, कुतिया ! बिरजू गुस्से से उठा, उसका लौड़ा तन कर हिलौरे
खा रहा था, मेरे बालों को खींचते हुए होंठ चूमने लगा।

हरामी छोड़ ! औकात में रह !
औकात दिखाती है हमें ???
उसके बाद उन्होंने जो कुछ मेरे साथ किया !मेरे बार बार औकात शब्द से वो
मुझे मेरी औकात दिखाने की धार चुके थे !

उन्होंने क्या किया ?
यह अगली बार पढ़ना !

- लेखिका : आंचल