एक रात


बनारस में कहावत है कि किसी जवान लड़की की गाण्ड देख कर अगर लौड़ा खड़ा नहीं हुआ तो वो बनारसी नहीं है। यहाँ लोग गाण्ड के दीवाने होते हैं। कोई चिकना लौण्डा हो तो भी लण्ड फ़ड़फ़ड़ा उठता है। फिर मैं और नसीम तो जवान, कम उम्र, और सुपर गोल गाण्ड वाली लड़कियाँ थी, किसी की नजर पड़ गई तो समझो लण्ड से नहीं तो उनकी नजरों से तो चुद ही जाती थी। हम दोनों ऐसी नजरें खूब पहचानती थी।
मैं और मेरी रिश्ते की बहन नसीम, जो मेरी अच्छी सहेली भी थी, हम दोनों बाल्कनी में खड़ी बाते कर रही थीं। नीचे ही देख रही थी कि मुझे दो लड़के नज़र आये।
"नसीम, ये दो नये लौण्डे कौन हैं?"
"वो तो अनवर है और ये जीन्स वाला फ़िरोज़ है, अपने ही रिश्ते में है।"
"यार, मस्त लौण्डे हैं, आज इनको पटाते हैं..."
"यार, तेरी तो बहुत जल्दी फ़ड़कने लगती है बानो..."
"सच कह रही हूँ, मुझे इन चिकने लौण्डों से चुदवाने में बड़ा मजा आता है..."
"हाय, दो सहेलियां खड़ी खड़ी, दोनों चुदायें घड़ी घड़ी ..."
हम दोनों खिलखिला कर हंस पड़ी। नीचे से दोनों ने हंसी सुन कर ऊपर देखा और दोनों हमें देखते ही रह गये। फिर दोनों ने एक दूसरे को मुस्कुरा कर देखा।
"लगा तीर दिल पर...!" मैंने कहा,"अब ये तो गये काम से...समझ लो आज रात का काम बन गया !"
नसीम मुझे हैरानी से देखने लगी..."देख, वो फ़िरोज़ मेरा वाला है...!"
"भेनचोद, तुझे लण्ड चाहिये या शकल... जो पट जाये वही ठीक है... चल अब एक्टिंग शुरू करें !"
नसीम भी पटाने की अपनी तरह से तैयारी करने लगी। मैंने भी अपना मूड बना लिया और अन्दर जा कर तंग काली वाली कैप्री पहन ली और एक नीचे गले वाला छोटा सा स्लीवलेस टॉप डाल लिया। ऐसा टॉप था कि जरा सा पास आने से चूंचियो के दर्शन हो जाते थे। थोड़ा सा मेक-अप किया और कंटीली नार बन कर नीचे उतर कर आ गई। उनमें से एक युवक अन्दर की ओर आ रहा था। मैंने आव देखा ना ताव, सीधे उससे टकरा गई।
"हाय अल्लाह, आह्ह्ह, ..." मैंने कराहते हुए उसे देखा।
"सॉरी...सॉरी... लगी तो नहीं...?" उस युवक ने कहा।
"हाय अम्मी... आप देख कर नहीं चलते...?" मैंने अपनी बड़ी बड़ी आंखे धीरे से उठाई... उसने ज्योंही मुझे देखा ... उसका दिल धक से रह गया... आंखे फ़ाड़ फ़ाड़ कर मुझे देखने लगा...
"या खुदा... रहम कर... ये हूर... आप कौन हैं...?"
उसके मुख से आह सी निकली। लगा कि काम बन गया।
"मैं... मैं.. शमीम बानो... " नाटक चालू था... मैंने अपनी आंखे धीरे से झुका ली... और जान करके उसके और पास आ गई। उसके दिल पर कई कांटे गड़ चुके थे। उसकी नज़र मेरे पास आते ही मेरे टॉप के अन्दर पड़ गई, जहाँ मेरे उभार उसकी आंखो को रस पिलाने के लिये बेताब हो रहे थे। उसे समय दिये बिना डोरे डाले जा रही थी।
"सुभान अल्लाह... ये जिस्म है या जादू ... !!" मेरा अगला तीर भी निशाने पर बैठा। मेरी नजर अचानक नसीम पर पड़ी तो बराबर हाथ हिला कर कुछ कहना मांग रही थी, पर मैं मौके की नजाकत को समझ रही थी, मुर्गा फ़ंसने को तैयार था...
"हाय... ये क्या कह रहे है आप..." मैं हाथ से छूटे कपड़े उठाने के लिये यूं झुकी कि कैप्री में से चूतड़ की दोनों गोलाईयां उभर कर उसके चेहरे के सामने आ गई। दोनों चूतड़ खुल कर खिल उठे... उसकी नजर ने इसका पूरा जायजा लिया, मेरे उठते ही काप्री मेरे चूतडों की दरार में घुस गई... उसके मुख से आह पर आह निकलती गई। तीर जिगर में धंसते चले गये।
"बानो, मैं फ़िरोज़... आपने तो जाने क्या जादू कर डाला ?" मैं नसीम का इशारा अब समझी। पर काम तो हो चुका था। मैंने तुरन्त उसकी तरफ़ कंटीली चिलमन से मुसकरा कर देखा।
"जादू... देखो आपने तो मुझे चोट लगा दी..." मैंने तिरछी नज़रों का एक वार और कर डाला।
"और मुझे जो चोट लगी है वो...?" घायल सा वो बोला।
"ओह... सॉरी... कहां लगी है...बताईये तो...!" मैंने अनजान बनते हुए कहा। उसका लण्ड का उठान शुरू हो चुका था, और पैंट में से उभर रहा था।
"यहां पर...!" उसने अपने दिल पर हाथ रख कर कहा।
"धत्त... हाय अल्लाह... !!" मैं कह कर नसीम वाले कमरे में भाग आई। फ़िरोज वहीं घायल सा तड़फता खड़ा रह गया। जाने कितने तीर लग चुके थे उसके दिल पर...।
नसीम ने मुझे देखते ही नाराजगी जाहिर की..."वो तो मेरा वाला था... साला बेईमान निकला... देखा नहीं तुझे देख कर मादरचोद ने लण्ड हिलाना चालू कर दिया।"
"अभी तो लण्ड हिला रहा है...देखना भेनचोद रात को यही लण्ड खड़ा मिलेगा... फिर क्या तेरी चूत और क्या मेरी चूत... सबको चोद देगा !"
"बानो, तू बड़ी खराब है... अब अनवर को मुझे पटाना पड़ेगा...!"
"सॉरी नसीम... साला वो पहले सामने आ गया... इरादा तो अनवर को पटाने का ही था!"
मैं ऊपर अपने कमरे में चली आई... । फ़िरोज मेरा पीछा कर रहा था। मेरे पीछे पीछे फ़िरोज भी आ गया। मैं कपड़े बदल चुकी थी और सिर्फ़ एक गाऊन जान करके डाल रखा था, अन्दर कुछ नहीं पहना था। पर अब तक वो आया क्यूं नहीं। उसने दरवाजा खटखटाया और अन्दर झांका... मैं उसके अचानक आने का मैंने घबराने का नाटक किया।
"आप... फ़िरोज जी..."
"खुदा कसम... मन नहीं माना... तो आपके पास आ गया...।"
"कहिये... क्या हुआ..." मुझे पता था कि हरामी का लौड़ा खड़ा हो रहा होगा... तो पीछे पीछे आ गया आशिकी झाड़ने। पर मुझे तो उसका पूरा आनन्द जो लेना था। सोचा चलो शुरुआत अभी कर लेते है...रात को चुदवा लेंगे। मेरी तैयारी पूरी थी, अन्दर से मैं पूरी नंगी थी, बस काम चालू होते ही मेरे नंगे जिस्म को मसल देगा वो...।
"बानो... आप मेरे मन को भा गई है... देखिये खुदा के लिये इन्कार मत करना..."
मैंने अपना मुख दोनों हाथों से ढक लिया...और शर्माने का भरपूर नाटक करने लगी।
"ऐसे मत कहिये... खुदा की मार मुझ पर... आप तो मेरे लिये खुद ही खुदा है..."
"क्या कहा... कबूल है... ओह्ह मेरी किस्मत... अल्लाह रे... आपने बन्दे की सुन ली..."
साला मरा जा रहा था मेरे पर... पर मुर्गा इतनी जल्दी लपेटे में आ जायेगा यकीन नहीं हो रहा था। मेरा जिस्म फ़ड़कने लगा कि अब उसके हाथ मेरे तन को सहलायेंगे। इतना सुन्दर, गोरा, लम्बा और सुडोल शरीर वाला लड़का... बिलकुल जैसे खजाने में से निकाला हो, नया नया जवान ... 18-19 साल का... हाय... बेचारा गया काम से। आगे बढ़ कर मेरे हाथो को उसने पकड़ लिया। मैंने जैसे कांपने का नाटक किया।
"हाय अल्लाह, ना छुओ ... मैं मर जाऊंगी" मैंने शरमाने का भरपूर नाटक किया। उसने जोश में मेरा मुख चूम लिया और उसके हाथ मेरी चूंचियों पर आकर उसे नापने लगे। मैंने शरम से झुक गई और उसे दूर हटाने लगी... "फ़िरोज... बस करो... छोड़ दो मुझे..."
"पहले वादा करो, रात को मेरे कमरे में मिलोगी ना..."
"बस करो ना... हाँ आ जाउंगी ना... बस" कहते ही फ़िरोज ने मुझे छोड़ दिया। मुझे निराशा हुई कि मेरा बदन तो कोरा ही रह गया। लेकिन नहीं ... वो इतनी जल्दी मानने वाला नहीं था। फिर से नजदीक आया और मुझे लिपटा लिया। गाऊन के अन्दर उसके हाथ पहुंचने लगे। मेरा तन पिघल उठा। मेरा अंग अंग नपा तुला सा दबा जा रहा था। सभी उभारों को उसने एक कली की तरह मसल दिया। मेरी सिसकियाँ गूंज उठी। चूत पानी टपकाने लगी। मैं उसकी बाहों में तड़प उठी। फिर धीरे से उसने छोड़ दिया। मैंने अपना गाऊन ठीक किया। वो मुझे प्यार से निहारते हुए जाने लगा।
"तो फिर रात को...। बाय ...बाय..." वो जैसे ही मुड़ा तो मुझे लगा कि मैंने तो उसे झटका दिया ही नहीं।
"फ़िरोज, रुको तो..." जैसे ही वो रुका , मैं उसके पास आ गई और उससे चिपक गई। वो कुछ समझता मैंने उसका लण्ड पकड़ लिया और दबाने लगी।
"बानो... मैं मर गया... छोड़ दे रे..."
"फ़िरोज प्लीज... दबाने दो... मेरी बहुत इच्छा थी इसे हाथ में लेकर दबाने की... बहुत मोटा और लंबा है?"
उसका लण्ड तन्ना उठा। वो तड़प उठा। मेरा हाथ हटाने लगा पर मैं कोई कच्ची खिलाड़ी थोड़े ही थी। जम के उसक लौड़ा पकड़ा और मसलने लगी। उसका डन्डा था भी लम्बा और हाथ में ऐसे फ़िट आया कि उसका मुठ ही मार दिया। वो लहरा उठा...
"बानो, अरे मेरा लण्ड तो छोड़ दे, हाय रे"
"प्लीज फ़िरोज... बहुत अच्छा है... मसलने दे ना" मैंने जिद करके मसलना चालू रखा। कुछ ही पलों में पेण्ट में एक काला धब्बा उभर आया। उसका वीर्य निकल पड़ा था। मेरा काम हो गया था। उसके मुंह से एक आह निकली...
मैंने कहा,"फ़िरोज... शाम को मेरा निकाल देना बस..." और हंस पड़ी।
"मेरी तो मां चोद दी बानो... तुझे भी नहीं छोड़ने वाला... तेरी भी फ़ोकी चोद डालूंगा देखना !" फ़िरोज़ भी झड़ने से थोड़ा शर्मिन्दा हो गया था।
रात के एक बज रहे थे। मेरे मोबाईल का अलार्म बज उठा, सुस्ती के मारे उठने का मन नहीं कर रहा था। पर फ़िरोज़ के मोटे लण्ड का ख्याल आते ही जिस्म तरावट से भर गया। मैं झट से उठी। मैंने नसीम के कमरे में झांक कर देखा और धीरे से उसे जगाया। हम दोनों ही दबे पांव कमरे से बाहर आ गये। हम दोनों ही रात के सोने वाले वाले कपड़े पहने थे। बस एक झीना सा पजामा और एक उटंगा सा कुर्ता...
"चल यार चुदना ही तो है क्या मेक-अप करना..." मैंने कहा और सीढ़ियां चढ़ कर फ़िरोज के कमरे के बाहर आ गई।
"अभी तू बाहर से देखना, फिर मैं तुझे बुला लूंगी" मैंने नसीम को तरकीब बताई।
"नहीं, मैं अनवर को बुलाती हूँ... तू जा..."
"पर अनवर... "
"मैंने उसे पटा लिया है... दिन को एक बार चुदा भी चुकी हूँ।" नसीम में फ़ुसफ़ुसा कर कहा। मुझे जलन हो उठी... साली भोसड़ी की... मेरे से पहले ही चुदा लिया। मैं तो चाह रही थी कि अनवर पर भी लाईन मार कर उसे फ़ंसा लेती और उससे भी खूब चुदाती...।
नसीम साईड वाले कमरे में अनवर के पास चली गई। मैंने फ़िरोज़ का दरवाजा खोला। मुझे किसी ने अचानक ही पीछे से दबोच लिया। सामने फ़िरोज़ खड़ा था... तो फिर मेरी गाण्ड में ये लण्ड किसका गड़ा जा रहा था।
"आज तो बानो की मां चोदनी है... साली ने मेरा दिन को मेरा माल निकाल दिया था" फ़िरोज़ ने मुस्करा कर कहा।
"चल तू क्या चोद रहा है..." ये आवाज अनवर की थी... मेरा मन मयूर नाच उठा... अनवर तो बिन पटाये ही लण्ड लिये हुए खड़ा है।
"मैं इसकी चूत चोदता हूँ और तू गाण्ड चोद इस... नमकीन की..." फ़िरोज़ बोला।
"साला हरामी, चोदने का मुझे वादा किया और चूत बानो की चोदेगा..." कमरे में अनवर को नहीं पा कर नसीम आ चुकी थी। मैं एक बार फिर ईर्ष्या से जल उठी। ये माँ की लौड़ी यहाँ कैसे मर गई। दो दो लण्ड की आश खत्म हो गई थी। फ़िरोज़ ने ज्योंही नसीम को देखा , वो उसकी ओर लपक उठा...
"अनवर , मेरे दिल की रानी आ गई..." और नसीम को अपनी बाहों में उठा कर बिस्तर पर आ गया। फ़िरोज़ का लण्ड देखते ही बनता था, नसीम को देखते ही वो फ़नफ़ना उठा था। मैं अब और निराश हो चली थी कि ये हरामी तो नसीम का आशिक निकला।
"मेरा पजामा मत फ़ाड़ना... नहीं तो नीचे नहीं जा पाउंगी !" नसीम में खुद ही अपना पजामा उतार दिया। मुझे भी अपना पजामा उतारने में भलाई ही लगी। अब कौन हमें छोड़ता... फ़िरोज़ ने नसीम को दबा डाला और लण्ड चूत में घुसेड़ दिया। नसीम ने फ़िरोज़ को जोर से कस लिया और सिसक उठी। मुझे नीचे पड़े बिस्तर पर अनवर ने प्यार से लेटाया और अपना खड़ा लण्ड मेरी चूत पर हौले हौले घिसने लगा। डबलरोटी की तरह फ़ूली हुई मेरी चूत के पट खुलने लगे। दोनों फ़ांकें खुल गई। बीच की पलकें जो हल्की भूरी सी, टेढी मेढी सी लहराती हुई मांसल चमड़ी और बीच में पानी का गीलापन और फिर झाग से बुलबुले से भरी मेरी रसीली चूत पर अनवर मर मिटा। उसके होंठ मेरी चूत से लग गये और उनका रसपान करने लगा। मेरी चूत से लगा मेरा दाना फ़ड़क उठा, उसके होंठ बार बार मेरे दाने को भी चूस लेते थे...
"अनवर मियां... मैं मर जाउंगी... प्लीज फ़िरोज की तरह चोद डालो ना..."
"नहीं, बानो... चोदेगा तो तुम्हें फ़िरोज ही, मैं तो गाण्ड का दीवाना हूँ..."
मुझे फिर थोड़ी सी निराशा हुई, पर कुछ ही देर में नसीम को चोद कर फ़िरोज़ मेरे पास हाज़िर हो चुका था। चूस चूस कर लगा था कि झड़ना बाकी है। पर मैंने अपने आप को कंट्रोल किया। फ़िरोज़ का खड़ा लण्ड, सुपाड़े की चमड़ी कटी हुई, सच्चा मुसलमान लग रहा था... उसकी मर्दानगी भी एक पठान की तरह लग रही थी। अनवर सामने से हट गया और फ़िरोज़ ने कमाण्ड सम्हाल ली। वो मेरे पर चढ़ गया और मुझे नीचे दबा लिया। मेरा सारा जिस्म कसमसा उठा। उसका भार बड़ा प्यारा लग रहा था। कुछ ही क्षणों में उसका गरम गरम लण्ड मेरे जिस्म के भीतर समाने लगा। मैं तड़प उठी।
"मेरे खसम... मजा आ गया... पूरा समा दे अन्दर... हाय..." उसने मेरा मुख अपने मुख से दबा लिया और निचले होंठ दबा कर चूसने लगा। अब उसका लण्ड अन्दर बाहर होने लगा। उधर नसीम की गाण्ड को अनवर लण्ड घुसेड़ कर चोद रहा था। नसीम भी मेरी ही तरह गाण्ड चुदाने में माहिर थी।
"बानो, आज आई है नीचे तू... तेरी आस तो मुझे कब से थी रे...अब तो चोद ही दिया !"
" हाय रे मेरे जिगर... तेरे नाम से ही मर मिटी थी जानू...मेरे दिल, मेरी जान... आह रे..." मैं भी अपने मन के लड्डू फ़ोड़ रही थी... साला ऐसा जवां मर्द कहाँ मिलेगा मुझे।
"मैंने कहा था ना तेरी फ़ोकी चोद कर मजा लूंगा... मस्त भोसड़ी है !"
"बस कुछ मत बोल, बस जोर से चोद दे..." मेरी बेताबी बढ़ती जा रही थी, पर मेरी चूत को और गहरी चुदाई चाहिये थी। उसके धक्के तेजी से चल रहे थे। मुझे भी वासना की आग घेर चुकी थी। जिस्म आग में सुलगने लगा था। मीठी मीठी आग तन को जला रही थी। पर मुझे और दबा कर चुदना था। मुझे लगा कि अभी लण्ड पूरा दम लगा कर नहीं चोद रहा है। बिना हल्के दर्द के कैसा चुदना। मैंने दांत भींचते हुये फ़िरोज को दबाया और पलटी मार कर उसके ऊपर आ गई।
"मादरचोद... लौड़े में दम नहीं है क्या... लौड़ा तो साले का मस्त दिखता है..." मैंने फ़िरोज़ को दबाते हुये चूत में उसका सुपाड़ा फ़ंसा लिया और उस पर सीधे बैठ गई और चूत पर पूरा जोर लगा कर लण्ड को अन्दर समा लिया। मुझे लगा कि अब सुपाड़ा की गद्दी ने जड़ में ठोकर मार दी है तब मैंने कस कस कर उसके लण्ड पर अपनी चूत पटक पटक कर मारनी चालू कर दी। हर बार मेरे मुख से आह निकल जाती... चूत की गहराई को उसका लण्ड और गहरा कर रहा था। गहराई की चोट एक अलग ही मजा दे रही थी, थोड़ा सा दर्द और खूब सारा मजा...। उसका लण्ड फ़ूलता सा लगा उसकी पकड़ मजबूत होने लगी। तभी अनवर ने मेरी गाण्ड थपथपा कर इशारा किया। मैं फ़िरोज पर लेट गई और गाण्ड ऊंची कर ली। मेरी गाण्ड में अनवर का लण्ड सरसराता हुआ घुस पड़ा। अनवर के लण्ड के झटके, मेरी चूत को फ़िरोज के लण्ड पर मार कर रहे थे।
फ़िरोज तो झड़ने के कगार पर था... और तभी फ़िरोज के मुख से सिसकारी निकल पड़ी और उसके लण्ड ने वीर्य छोड़ दिया। उसके बलिष्ठ हाथों ने मुझे जकड़ लिया। उसका लण्ड मेरी चूत में गरम गरम लावा भरने लगा... तभी मेरा शरीर भी गर्मी पा कर लहरा उठा और मेरा रज भी छूट पड़ा। मैंने अनवर को धक्का मार कर पीठ पर से उतार दिया और
फ़िरोज के ऊपर लेट कर सुस्ताने लगी। तभी अनवर अपना मुठ मार कर अपना वीर्य मुझ पर उछालने लगा। मेरा चेहरा और बदन उसके वीर्य से भीग उठा......
फ़िरोज़ ने मुझे अलग कर दिया और बाथ रूम में चला गया। मैंने भी सुस्ती छोड़ी और उठ खड़ी हुई, नसीम सो चुकी थी, उसको उठाया और हम दोनों ने अपने चूतडों और चूत के आस पास लगे वीर्य को धो कर साफ़ कर लिया। थोड़ा सा पानी से मैंने अपनी पीठ और सामना साफ़ कर लिया।
"शब्बा खैर... मेरे जानू..." फ़िरोज़ और अनवर ने मुसकरा कर हमें विदा किया। पर नसीम मुड़ मुड़ कर चुदासी आंखों से उन्हे निहार रही थी... मुझे हंसी आ गई...
"अरे कल फिर और चुदा लेना... अब चल साली, नहीं तो सुबह हो जायेगी..."
हम दोनों भारी मन से चुदने की इच्छा लिये दरवाजे से दोनों को एक बार और देखा और अंधेरे में कदम बढ़ा दिये...


- लेखिका : शमीम बानो कुरेशी